أمْسَى يُعذّبني ويُضنيني |
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شوقٌ طغى طغيانَ مجنونِ |
أين الشفاءُ؟ ولم يعد بيدي |
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إلا أضاليلٌ تُداويني |
أبغي الهدوءَ ولا هدوءَ وفي |
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صدري عُبابٌ غيرُ مأمون |
يهتاج إن لجَّ الحنينُ بهِ |
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ويئنّ فيه أنينَ مطعون |
ويظلّ يضرب في أضالعهِ |
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وكأنّها قضبانُ مسجون |
ويحَ الحنينِ وما يُجرِّعني |
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من مُرّه ويبيتُ يسقيني! |
ربَّيْتُه طفلاً بذلتُ لهُ |
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ما شاء من خفضٍ ومن لين |
فاليومَ لما اشتدَّ ساعدهُ |
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وَرَبا كنوّار البساتين |
لم يرضَ غيرَ شبيبتي ودمي |
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زاداً يعيش به ويُفنيني |