
أغاني التائه
أبو القاسم الشابي - تونس
كــان فــي قلبـيَ
فجـرٌ، ونجـومْ، |
وبحـــارٌ، لا
تُغَشِّـــيها الغيــومْ |
وأناشـــيدُ،
وأطيـــارٌ تحـــومْ |
وربيــعٌ،
مُشْــرِقٌ، حـلوٌ، جـميلْ |
كــان فــي قلبــي
صبـاحُ وإيـاهْ |
وابتســامات،
ولكــن... واأســاهْ! |
آه! مــا أهــول
إعصـارَ الحيـاهْ! |
آه مــا أشــقى
قلـوب النـاس! آهْ! |
كــان فــي قلبـي
فجـرٌ، ونجـومْ، |
فــإذا الكــلُّ
ظــلام وسـديمْ...، |
كــان فــي قلبـيَ
فجـرٌ، ونجـومْ |
يـا بنـي أمِّـي!
تُـرى أيـن الصباحْ؟ |
قــد تقضّـى
العُمْـرُ والفجْـرُ بعيـدْ |
وطغــى الـوادي
بمشـبُوب النُـواحْ |
وانقضــتْ
أنشـودةُ الفصْـل السـعيدْ |
أيـن نـايي؟ هـل
ترامتْـه الريـاحْ؟ |
أيـن غـابي؟ أيـن
محرابُ السجودْ.؟ |
خـبِّروا قلبـي -
فما أقسى الجراحْ! - |
كـيف طـارتْ
نشـوةُ العيشِ الحميدْ؟ |
يـا بنـي أمِّـي!
تُـرى أيـن الصباحْ؟ |
أوراء البحــرِ؟
أم خـلفَ الوجـودْ؟ |
يـا بنـي أمِّـي!
تُـرى أيـن الصباحْ؟ |
ليـت شـعري! هـلْ
سَتُسْـلِيني الغداهْ |
وتُعــزِّيني عــن
الأمس الفقيــدْ؟ |
وتُـــريني أن
أفـــراح الحيـــاهْ |
زُمَــرٌ تمضــي،
وأفـواجٌ تعـودْ؟ |
فــإذا قلبــي
صبــاح، وإيـاهْ... |
وإذا أحـــلاميَ
الأولـــى ورودْ... |
وإذا الشُّــحرورُ
حــلو النَّغمــاتْ.. |
وإذا الغــابُ
ضيــاءٌ ونشــيدْ..؟ |
ليـت شـعري! هـل
ستسـليني الغداهْ |
أم ستنســاني،
وتبقينــي وحــيدْ؟ |
ليـت شـعري! هـل
تعـزِّيني الغداهْ؟ |
[ الثلاثاء 27 مارس / أذار 1929 ، 15 شوال 1347 ] |
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